यह किसने आग लगाई है?
जहां लोग प्रीत की पींग भरे, बगिया महके,
खुशियां चहके,
अब वहां उदासी छाई है।
यह किसने आग लगाई है?
यह खंजर किसने घोंपा है?
किससे पाया यह धोखा है?
कुछ अपने ही पथभ्रष्ट हुए,
तब मिला उन्हें यह मौका है।
यह किसने खोदी खाई है?
जो पीड़ा हुई पराई है।
भाई को भाई काट रहा,
जाति-मजहब में बांट रहा,
किसकी यह आह लगी घर को?
अपना ही घर को चाट रहा।
अब चमन हुआ हरजाई है।
यह किसने नजर लगाई है?
कुछ छिपे सपोले विष घोलें,
गैरों की भाषा वो बोलें,
चंद चांदी के टुकड़ों के लिए
घर का ये भेद उन्हें खोलें।
लो भाई बने आतताई हैं।
जो खोदें घर में खाई हैं।
-ओमप्रकाश नापित (उदय)
Thursday, June 18, 2009
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Ham sote rahe, aag lagane wale laga gaye..ab jaagna behad zarooree hai, warna sab mit jayega!
ReplyDeletehttp://lalitlekh.blogspot.com
http://kavitasbyshama.blogspot.com
http://aajtakyahantak-thelightbyalonelypath.blogspot.com
Any blogs kee URL in blogs pe mil jayegee..zaroor padharen...ek snehil nimantran hai!
"word verification" gar hai,to pls use hata den!
आप की रचना प्रशंसा के योग्य है . आशा है आप अपने विचारो से हिंदी जगत को बहुत आगे ले जायंगे
ReplyDeleteलिखते रहिये
चिटठा जगत मे आप का स्वागत है
गार्गी
भाई को भाई काट रहा,
ReplyDeleteजाति-मजहब में बांट रहा,
किसकी यह आह लगी घर को?
अपना ही घर को चाट रहा।
आज के haalaat को sajeev bayaan kiyaa है इस rachnaa में आपने........... lajawaab
सृजनात्मक विचारो में नवरचना करने की अद्भुत शक्ति होती हैं।
ReplyDeletedusra aag lagye itni himmat kahan,ham to khud karte hain ye kaam. narayan narayan
ReplyDeleteSarthak rachna.
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